Thursday, May 22, 2008

हर लाश चलनी चाहिए...मेरे सिने में ना सही तेरे सिने में सही आग लेकिन जलनी चाहिए

जैनेन्द्र के लिखे हुए ये शब्द मरना मुशकिल कर देते हैं - परिवार,समाज ,देश, दूर की बात लगती है , मेरा अंतर्द्वंद ही मुझे खोकला कर रहा है । सही ग़लत का भेद मिट सा गया है -सोच की सीमाएं लाँघ दी है मेरे मन ने -अब ये सवाल नही रहा हम क्यों जीते हैं -सवाल है कब तक जीयेंगे -हम मर क्यों नही जाते ?

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